Mir Jafar: आजकल जब भी नेता विरोधी पर अटैक करते हैं, दलबदल-फूट जैसे आरोप लगाते हैं तो झट से मीर जाफर का नाम ले लेते हैं. उस लड़ाई को करीब 300 साल होने वाले हैं लेकिन मीर जाफर का परिवार अब तक वो दाग नहीं धो सका है. परिवार को आज भी प्रतिष्ठा नहीं मिली. पढ़िए बंगाल के मुर्शिदाबाद की कहानी.
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Murshidabad Mir Jafar Story: हमने इतिहास में पढ़ा है कि 1757 में प्लासी के मैदान पर जब अंग्रेजों की सेना आ खड़ी हुई तो एक सेनापति ने गद्दारी कर दी. जी हां, रॉबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की उस लड़ाई में सेनापति मीर जाफर ने अपनी टुकड़ियों को युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. क्लाइव ने यह कहकर उसे अपने साथ मिला लिया था कि सिराजुद्दौला को हटाकर मीर जाफर को नवाब बना दिया जाएगा. यह जंग महत्वपूर्ण थी क्योंकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली बड़ी जीत साबित हुई. सिराजुद्दौला को मार दिया गया और मीर जाफर गद्दी पर बैठा. बाद के वर्षों में यह नाम गद्दारी का पर्याय बन गया. हालांकि अब मीर जाफर के वंशज 267 साल बाद वो दाग धोने का प्रयास कर रहे हैं.
बंगाल के राजनीतिक विमर्श में मीर जाफर के साथ गद्दार जोड़ा जाना नई बात नहीं है. उस निर्णायक लड़ाई के बाद ही बंगाल पर अंग्रेजी हुकूमत का रास्ता साफ हुआ. हालांकि मीर जाफर के वंशज अपने पूर्वज के विश्वासघात के चैप्टर से खुद को दूर रखना चाहते हैं. मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सबसे भरोसेमंद जनरल हुआ करता था लेकिन ऐन वक्त पर विश्वासघात कर बैठा.
मुर्शिदाबाद का वो किला
मुर्शिदाबाद में किला निजामत में मीर जाफर के वंशज सैयद रजा अली मिर्जा रहते हैं. वह 14वें परपोते हैं. बेहद सामान्य जिंदगी जीते हैं. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक सैयद रजा बताते हैं कि कैसे एक दाग (गद्दार) उनके परिवार को हमेशा परेशान करता रहा. उनके ड्राइंग-कम- बेडरूम में दीवार पर सभी पूर्वजों के चित्र लगे हैं, लेकिन कहीं मीर जाफर नहीं है. उसकी जगह नवाब सिराजुद्दौला का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है.
साइकिल से चलते हैं छोटे नवाब
उन्होंने कहा, 'मैं अपने मेहमानों से दुर्व्यवहार नहीं चाहता. करीब 80 साल के मिर्जा को लोग छोटे नवाब के नाम से पुकारते हैं. परिवार की प्रतिष्ठा और समृद्धि में गिरावट के बावजूद वह गर्मजोशी से लोगों से मिलते हैं. आज वह साइकिल से चलते हैं लेकन उन्हें याद है जब शाही हाथी पर सवार होकर वह स्कूल जाया करते थे.
लोकसभा चुनाव में भी मीर जाफर की गद्दारी का शोर है. इस पर वह कहते हैं कि क्या करें. मैं अपने पूर्वज के नाम के साथ जुड़े इतिहास को तो बदल नहीं सकता. हालांकि अपने पूर्वज का थोड़ा बचाव करते हुए मिर्जा यह भी कहते हैं कि वह घसीटी बेगम (अली वर्दी खान की बड़ी बेटी), जगत सेठ और ईस्ट इंडिया कंपनी के कासिम बाजार चीफ विलियम वाट्स और रॉबर्ट क्लाइव की तरफ से रची गई मुख्य साजिश में शामिल नहीं थे.
2 दिन पाकिस्तान में चला गया था मुर्शिदाबाद?
छोटे नवाब के बेटे फहीम मिर्जा प्राइमरी स्कूल के टीचर हैं और एक वार्ड में टीएमसी के काउंसलर हैं. फहीम बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को रेडक्लिफ ने मुर्शिदाबाद को पाकिस्तान को दे दिया और महल पर पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया गया. लेकिन दो दिन के अंदर उनके पूर्वज वासिफ अली मिर्जा के दखल के कारण फिर से एक डील हुई. खुलना बांग्लादेश का हिस्सा बना और मुर्शिदाबाद के शाही महल पर 17 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया गया. फहीम कहते हैं कि उनके पूर्वज वासिफ अली हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के बड़े हिमायती थे.
परिवार के थे पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति
छोटे नवाब बताते हैं कि उनके परिवार के ही सदस्य इस्कंदर मिर्जा पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति हुए थे. वह आगे कहते हैं कि मैं जाफरागंज में मीर जाफर की पारिवारिक कब्रगाह में दफन नहीं होना चाहता. वहां मीर जाफर के खानदान के 1100 लोगों की कब्र है. वह आगे कहते हैं कि शायद इससे मुझे कम गाली मिले.
बताते हैं कि मीर जाफर की कब्र पर लोग थूक देते हैं. 500 रुपये जुर्माने का नियम बनाना पड़ा. कब्रिस्तान के गाइड ने बताया कि उन्हें प्रशासन की तरफ से 11 रुपये महीने मिलते हैं. यह पैसा नवाब के समय से नहीं बढ़ा है.