बागपत में बदरुद्दीन शाह की मजार नहीं, कोर्ट ने महाभारत काल का लाक्षागृह मानकर हिन्दुओं को सौंपी 100 बीघा जमीन
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बागपत में बदरुद्दीन शाह की मजार नहीं, कोर्ट ने महाभारत काल का लाक्षागृह मानकर हिन्दुओं को सौंपी 100 बीघा जमीन

Baghpat news: बागपत लाक्षा ग्रह और मजार विवाद पर फैसला आ चुका है. बागपत में बदरुद्दीन शाह की मजार और लाक्षा ग्रह मामले पर एडीजे कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. 

Baghpat news Mahabharat Lakshgriha not Badruddin Shah majar

Baghpat news: बागपत लाक्षा गृह और मजार विवाद (Baghpat Mahabharat Lakshgriha not Badruddin Shah majar) पर फैसला आ चुका है. बागपत में बदरुद्दीन शाह की मजार और लाक्षा गृह मामले पर एडीजे कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट के फैसले के अनुसार इस मामले में हिंदू पक्ष की जीत हुई है. हिंदु पक्ष को कोर्ट ने 100 जमीन के साथ- साथ मजार पर भी मालिकाना हक दे दिया है.  

महाभारत काल से जुड़ा मामला
इस मामले में कोर्ट ने 10 से ज्यादा हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाही दर्ज की थी. बता दें कि  शिविल जज शिवम द्विवेदी ने मुस्लिम पक्ष का केस खारिज कर दिया था. कोर्ट में इस मामले पर मुकदमा पिछले 50 साल से हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के बीच चल रहा था. ये महाभारत काल से जुड़े लाक्षागृह का मामला है. जहां जिसे मुस्लिम समाज लाक्षागृह नहीं बल्कि शेख बदरुद्दीन की मजार बताने में जुटा हैं. इसका वाद 1970 से बागपत सिविल कोर्ट में चल रहा हैं. जिस पर आज बागपत की सिविल कोर्ट कभी भी फैसला सुना दिया है.  

बागपत के इस बरनावा इलाके की पहचान महाभारत में उल्लेखित वारणावत से की गई है. बरनावा हिंडन और कृष्णा नदी के किनारे बसा गांव है. यहां लगभक 100 फिट ऊंचा और 100 बीघा जमीन में एक बड़ा टीला है. पौराणिक मान्यता है कि यही वो जगह है, जहां पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह बनवाया गया था. इस टीले के पास एक गुफा भी है. बताया जाता है कि यही वो प्राचीन गुफा है, जहां की आग की लपटों से बचने के लिए पांडवों से शरण ली थी. पुरातत्व विभाग ने इस इलाके का सर्वेक्षण भी किया था. यहां महाभारत कालीन सभ्यता सभ्यता और संस्कृति के अवशेष भी एएसआई को मिल चुके हैं. यह जगह एएसआई के संरक्षण में ही है. यहां लाक्षागृह के पास एक गुरुकुल और कई भव्य यज्ञशाला भी हैं. यहां साल में दो बार महायज्ञ का आयोजन किया था. 

1952 में हस्तिनापुर एएसआई डायरेक्टर की अगुवाई में यहां सर्वे हुआ था. यहां 4500 साल पुराने मिट्टी के बर्तन यानी मृदुभांड भी मिले थे. दूसरी बार 2018 में विवाद उभरने के बाद टीले का उत्खनन भी शुरू हुआ था. कई मूर्तियां और हड्डियां भी यहां मिली हैं, जो प्राचीन काल के अवशेषों का इशारा करती है. 

मुस्लिम पक्ष इसे शेख बदरुद्दीन की मजार और उनकी कब्रिस्तान का एरिया बताता है. 1970 में हिन्दू मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद के बाद यह मामला मेरठ सिविल कोर्ट में दायर हुआ था, फिर इसे बागपत एडीजे कोर्ट स्थानांतरित किया गया. महाभारत सर्किट के तहत इस स्थल को विकसित करने की योजना यूपी सरकार ने बनाई है. 

एएसआई रिपोर्ट से हिन्दू पक्ष गदगद 
इससे पहले अयोध्या राम मंदिर विवाद के पटाक्षेप के साथ वहां राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है. काशी में ज्ञानवापी में मंदिर होने की एएसआई रिपोर्ट से हिन्दू पक्ष गदगद है. व्यासजी तहखाने में पूजा पाठ भी शुरू हो चुका है. हिन्दू पक्ष वजूखाने में कथित शिवलिंग वाले परिसर के भी एएसआई सर्वे की मांग कर रहा है. वहीं मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में भी हिन्दू पक्ष मालिकाना हक की लड़ाई को अदालत तक ले जा चुका है.

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